छत्तीसगढ़

कुसुमकसा की विशाल कांवड़ यात्रा और भगवान शिव मंदिर का इतिहास

दल्ली राजहरा

कांवड़ यात्रा: एक 30 वर्ष पुरानी परंपरा

दल्ली राजहरा से 7 किलोमीटर दूर ग्राम कुसुमकसा के ग्रामीणों द्वारा हर वर्ष सावन के अंतिम सोमवार से एक दिन पूर्व, रविवार को विशाल कांवड़ यात्रा निकाली जाती है। इस वर्ष 3 अगस्त 2025 को सुबह 10:00 बजे यह यात्रा झरन मैया कुंड के लिए शुरू होगी। कुसुमकसा के पूर्व जनपद सदस्य संजय बैस के अनुसार, यह कांवड़ यात्रा पिछले 30 वर्षों से आयोजित की जा रही है, जिसकी शुरुआत 1990 के दशक में स्वर्गीय बुटु सिंह बैस, नवल किशोर मिश्रा, सोहनमल डरसेना और डॉ. भूपेंद्र मिश्रा द्वारा की गई थी।

वर्तमान में यह यात्रा कुसुमकसा के दुर्गा मंदिर के पुजारी लखन गोस्वामी के नेतृत्व में निकाली जाती है। इस यात्रा में 250 से अधिक महिलाएं, पुरुष और बच्चे उत्साहपूर्वक हिस्सा लेते हैं। ये भक्त कुसुमकसा से 9 किलोमीटर पैदल चलकर झरन माता मंदिर परिसर में स्थित प्राकृतिक झरन कुंड पहुंचते हैं और वहां से जल लेकर वापस 9 किलोमीटर पैदल चलकर कुसुमकसा के भगवान शिव मंदिर में जलाभिषेक करते हैं।

यात्रा की शुरुआत सुबह 10:00 बजे कुसुमकसा से होगी। पिछले तीन वर्षों से राम जानकी सेवा समिति, कुसुमकसा इस आयोजन में पूरा सहयोग कर रही है। पहले यह यात्रा सादगी से आयोजित होती थी, लेकिन अब डीजे और संगीत के साथ यह एक विशाल आयोजन बन चुका है।

भगवान शिव मंदिर का इतिहास

कुसुमकसा के भगवान शिव मंदिर का इतिहास भी अद्भुत और प्रेरणादायक है। संजय बैस के अनुसार, 1960 के दशक में उत्तर प्रदेश से आए भागवताचार्य पंडित मणि प्रसाद मिश्रा कुसुमकसा पहुंचे। वे गांव-गांव जाकर भगवान की कथाएं सुनाया करते थे। इस दौरान उन्होंने दान-दक्षिणा के माध्यम से लगभग 3000 रुपये एकत्र किए और ग्रामीणों के सामने भगवान शिव के विशाल मंदिर निर्माण का प्रस्ताव रखा। ग्रामीणों ने इस प्रस्ताव को सहर्ष स्वीकार किया और अपनी क्षमता के अनुसार सहयोग दिया।

मंदिर निर्माण के दौरान पंडित मणि प्रसाद ने ग्रामीणों से कहा कि वे मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा और निर्माण पूर्ण होने का दृश्य नहीं देख पाएंगे, क्योंकि उससे पहले ही उनकी मृत्यु हो जाएगी। उनकी यह बात ग्रामीणों के मन में अटक गई, लेकिन उन्होंने मंदिर निर्माण का कार्य जारी रखा। अंततः मंदिर का निर्माण पूर्ण हुआ और पंडितों ने प्राण प्रतिष्ठा की तारीख तय की।

आश्चर्यजनक रूप से, प्राण प्रतिष्ठा से ठीक पहले, मंदिर परिसर में बैठे हुए पंडित मणि प्रसाद की मृत्यु हो गई, जैसा कि उन्होंने भविष्यवाणी की थी। ग्रामीणों ने पहले उनकी अंतिम क्रिया संपन्न की और फिर भगवान शिव की मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा की। संजय बैस के अनुसार, यह घटना अप्रत्याशित थी, लेकिन ग्रामीणों के लिए अलौकिक और अविस्मरणीय बन गई।

आज भी जीवंत है भक्ति की परंपरा

कुसुमकसा के ग्रामीण आज भी पूरे उत्साह और भक्ति के साथ कांवड़ यात्रा को जीवंत रखे हुए हैं। यह यात्रा न केवल धार्मिक महत्व रखती है, बल्कि ग्रामीणों की एकता और सामूहिक भक्ति का प्रतीक भी है। राम जानकी सेवा समिति के सहयोग से यह आयोजन और भी भव्य हो गया है, जिसमें डीजे और संगीत के साथ भक्त महादेव की भक्ति में लीन होकर जलाभिषेक करते हैं।

यह कांवड़ यात्रा और भगवान शिव मंदिर का इतिहास कुसुमकसा की सांस्कृतिक और धार्मिक धरोहर का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, जो भविष्य में भी ग्रामीणों के बीच भक्ति और उत्साह का संचार करता रहेगा।

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